सेक्टर-12 में सही ढंग से सफाई कराने की रेजिडेंट्स की मांग न तो एरिया सेनिटेशन सुपरवाइजर ने सुनी और न ही पंचकूला नगर निगम के अफसरों ने। आखिरकार रेजिडेंट्स ने अपने बलबूते सेक्टर में जगह-जगह पिछले एक महीने से लगे कचरे के ढ़ेर हटवाए हैं।
इसके लिए रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन, सेक्टर-12 की ओर से मंगलवार को खासतौर पर ट्रैक्टर-ट्रॉली और लेबर लगाई गई। सेक्टर में दिनभर चले इस काम में करीब ट्रॉली के सात चक्कर लगवाकर कचरे के ढ़ेर हटवाए गए। सेक्टर से कचरा ट्रॅक्टर-ट्रॉली में उठाकर जब इसे डम्पिंग ग्राउंड, सेक्टर-23 में फैंकने गए तो भी रेजिडेंट्स और पंचकूला एमसी के सेनिटेशन कर्मचारियों में बहस हुई। पंचकूला एमसी के कर्मचारियों ने कचरे से भरी यह ट्रॉली डम्पिंग ग्राउंड में फैंकने नहीं दी। रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन, सेक्टर-12 के प्रतिनिधियों और पूर्व पार्षद लिली बावा ने इस बारे में नगर निगम के एग्जीक्यूटिव अफसर और कमिश्नर से बातचीत की। उन्हें यह कचरा ग्रीन वेस्ट होने के कारण सेक्टर 20 और 21 की डिवाइडिंग रोड पर मद्रासी काॅलोनी के नजदीक ग्राउंड में फैंकने को कहा गया। इस प्रोसेस में काफी समय बर्बाद हो गया। पूर्व पार्षद लिली बावा ने कहा कि सेक्टर-12 में सफाई का कामकाज ठीक चल रहा था।
यहां रोजाना होने वाली सफाई की सभी रेजिडेंट्स तारीफ करते थे। एक महीने पहले सेक्टर के सेनिटेशन सुपरवाइजर का ट्रांसफर कर उसे सेक्टर 21 में शिफ्ट कर दिया गया। उसकी जगह नया सेनिटेशन सुपरवाइजर लगाया गया है। इसके बाद से ही सेक्टर में सफाई की प्रॉब्लम आ रही है।
मच्छर पैदा होने से लोग होते हैं बीमार, अफसर गैर जिम्मेदार
एसोसिएशन के प्रधान विपिन साहनी ने कहा कि सेक्टर की गलियां साफ कराने के लिए उन्होंने एक दिन के लिए ट्रॉली 1800 रुपए में किराये पर ली थी। ट्रॉली के साथ आई लेबर को 1500 रुपए दिए गए हैं। लोगों को अवेयर करने के लिए बनवाए गए बैनर पर 200 रुपए खर्च हुए। कुल मिलाकर 3500 रुपए खर्च कर एसोसिएशन ने मंगलवार को खुद ही जगह-जगह फैले कचरे को हटवाया है। पंचकूला नगर निगम स्वच्छता अभियान चला रहा है लेकिन उसकी तरफ से नियुक्त सफाई कर्मचारी काम करने को तैयार नहीं हैं। एक महीने लगातार रिक्वेस्ट के बाद भी गलियों में फैला कचरा नहीं हटाया गया। क्योंकि हमें आना शहर साफ-सुथरा रखना है, इसलिए लोगों ने ही अपनी जिम्मेदारी समझकर सफाई कराने का फैसला लिया। गलियों में फैली गंदगी से पैदा मच्छरों से बीमारी का सामना तो रेजिडेंट्स को ही करना पड़ता है। अफसरों को तो अपनी जिम्मेदारी का अहसास तक नहीं है।