- मोदी रूस के सुदूर पूर्व में स्थित व्लादिवोस्तोक जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने
- इस क्षेत्र में खनिज और ऊर्जा के कई भंडार मौजूद हैं, लेकिन भारत के लिए मौजूदा जलमार्ग उपयुक्त नहीं
- भारत अब तक अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए मध्यपूर्व के देशों पर निर्भर है
Dainik Bhaskar
Sep 04, 2019, 09:53 AM IST
मॉस्को. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को 3 दिन के रूस दौरे पर व्लादिवोस्तोक पहुंचे। यहां भारतीय समुदाय ने एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया। मोदी को एयरपोर्ट पर ही गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। वे यहां रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ ईस्टर्न इकोनॉमिक समिट (ईइएस) में हिस्सा लेंगे। पुतिन ने मोदी को इस समिट में चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया है। रूस के सुदूर व्लादिवोस्तोक जाने वाले मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं।
इसके बाद दोनों नेता सालाना भारत-रूस समिट में भी हिस्सा लेंगे। मोदी और पुतिन के बीच इस मुलाकात में ऊर्जा से जुड़े कई समझौते हो सकते हैं। दरअसल, मोदी रूस के सुदूर पूर्वी शहर व्लादिवोस्तोक जाने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। इस क्षेत्र में खनिज और ऊर्जा के बड़े भंडार मौजूद हैं। मोदी इस मुलाकात में पुतिन से आर्कटिक जलमार्ग खोलने का आग्रह कर सकते हैं, ताकि भारत से रूस के इस हिस्से की दूरी कम हो जाए और दोनों देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाए जा सकें।
जलमार्ग पर समझौता अहम
अगर चेन्नई-व्लादिवोस्तोक जलमार्ग पर समझौता होता है तो भारत-रूस के बीच व्यापार को मजबूती मिलेगी। व्लाओएनजीसी और कुछ हीरा कंपनियां अभी रूस के इस सुदूर पूर्वी इलाके में काम कर रही हैं। भारत-रूस इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर पर भी काम कर रहे हैं। यह 7,200 किलोमीटर लंबा सड़क, रेल और समुद्र मार्ग होगा। यह भारत, ईरान और रूस को जोड़ेगा। कॉरिडोर हिंद महासागर और फारस की खाड़ी से ईरान के चाबहार पोर्ट होते हुए रूस के सेंट पीटर्सबर्ग को जोड़ेगा।
मैनपावर एक्सपोर्ट करने पर विचार कर रहे दोनों देश
विदेश सचिव विजय गोखले ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बताया कि भारत और रूस के बीच एक विशेष रिश्ता है। प्रधानमंत्री इस रिश्ते को परमाणु ऊर्जा और डिफेंस के क्षेत्र से आगे अर्थव्यवस्था से जोड़ना चाहते हैं। गोखले ने कहा कि भारत आने वाले समय में रूस को मैनपावर निर्यात करने पर भी विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि दुनिया में जहां कहीं भी मैनपावर की कमी है, भारत उन सभी जगहों पर स्किल्ड वर्कर्स को भेजने के बारे में सोच रहा है।
विदेश सचिव ने बताया कि भारत का प्रस्ताव अभी शुरुआती चरण में है और रूस की तरफ से इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। दरअसल, रूस के सुदूर पूर्वी इलाके व्लादिवोस्तोक तक ट्रेन से पहुंचने में 7 दिन लगते हैं। यहां कम जनसंख्या की वजह से प्राकृतिक संसाधनों के खनन में भी परेशानी आती है। ऐसे में कृषि और खनन सेक्टर में भारत के लिए यह बड़ा मौका होगा।
पहले दिन दोनों देशों के बीच डेलिगेशन स्तर की बातचीत होगी
मोदी के रूस दौरे के पहले दिन उनके और राष्ट्रपति पुतिन के बीच डेलिगेशन स्तर की बातचीत होगी। इसके बाद दोनों अलग से बैठक करेंगे। विदेश सचिव के मुताबिक, प्रधानमंत्री के साथ 50 सदस्यों वाला फिक्की का एक डेलिगेशन भी व्लादिवोस्तोक जाएगा। इसके बाद पुतिन मोदी को रूस के एक शिप बिल्डिंग यार्ड भी ले जाएंगे, जहां तेल के टैंकर और बर्फ तोड़ने वाले आइस ब्रेकर शिप बनते हैं। अगले दिन यानी 5 सितंबर को दोनों नेता ईस्टर्न इकोनामिक फोरम में हिस्सा लेंगे। मोदी के भारत लौटने से पहले पुतिन उन्हें जूडो चैम्पियनशिप दिखाने भी ले जाएंगे।