- प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने की अपील की थी
- प्लास्टिक मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन, केंद्र सरकार और सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट से जुड़े तीन एक्सपर्ट्स ने भास्कर APP को इसकी बारीकियां बताईं
- पर्यावरण विशेषज्ञ एनपी शुक्ला के मुताबिक, 600 डिग्री तापमान पर प्लास्टिक जलाने से हमें ईंधन मिल सकता है
- हर भारतीय सालाना औसतन 11 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है, देश में प्लास्टिक की सालाना खपत 1.70 करोड़ टन से ज्यादा
Dainik Bhaskar
Aug 26, 2019, 08:47 AM IST
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए भाषण में देश को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त बनाने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा था कि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन से यह अभियान शुरू हो। सिंगल यूज प्लास्टिक वह होता है, जिसे सिर्फ एक ही बार इस्तेमाल में लाया जा सकता है। लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि जब पन्नी से लेकर हवाई जहाज बनाने में प्लास्टिक का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है तो सिंगल यूज प्लास्टिक की परिभाषा तय करना और उस पर प्रतिबंध लगाना असंभव-सा लगता है। सरकार को प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट पर ध्यान देना चाहिए, ताकि इसे हम कोयले का वैकल्पिक ईंधन बना सकें। इस मुद्दे पर भास्कर ऐप ने ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन हितेन भेड़ा, सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट के डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर दिनेश राज बंदेला और केंद्र सरकार से जुड़े पर्यावरण विशेषज्ञ एनपी शुक्ला से बात की।
क्या होता है सिंगल यूज प्लास्टिक?
- ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन और वर्तमान में एसोसिएशन की पर्यावरण समिति के सदस्य हितेन भेड़ा बताते हैं कि भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है। यह भी तय नहीं है कि कौन-सी चीजें सिंगल यूज प्लास्टिक के दायरे में आएंगी। इसकी परिभाषा यूरोप में तय है। इसके अनुसार, प्लास्टिक की बनी ऐसी चीजें, जिनका हम सिर्फ एक ही बार इस्तेमाल कर सकते हैं या इस्तेमाल कर फेंक देते हैं और जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, वह सिंगल यूज प्लास्टिक कहलाता है।
- सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट में (सीएसई) एन्वायरमेंटल गवर्नेंस के डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर दिनेश राज बंदेला बताते हैं कि प्लास्टिक को पेट्रो केमिकल्स से तैयार किया जाता है। सिंगल यूज प्लास्टिक किसी भी तरह के पॉलीमर (एचडीपीई, एलडीपीई, पीपी, पीएस, पीईटी) से बना सकते हैं। इसका इस्तेमाल चिप्स पैकेट की पैकेजिंग, बोतल, स्ट्रॉ, थर्माकॉल प्लेट और गिलास बनाने में किया जाता है।
देश में रोजाना करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा, 60% ही रिसाइकल हो पाता है
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के देश के 60 बड़े शहरों में किए गए सर्वे में सामने आया था कि शहरों से रोजाना 4,059 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इस आधार पर अनुमान लगाया गया था कि देशभर से रोजाना 25,940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें से सिर्फ 60% यानी 15,384 टन प्लास्टिक कचरा ही एकत्रित या रिसाइकल किया जाता है। बाकी नदी-नालों के जरिए समुद्र में चला जाता है या फिर उसे जानवर खा लेते हैं।
1.5 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा विदेशों से आता है
हर साल 1.5 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा विदेशों से भारत आता है। 2016-17 में 1.55 लाख टन प्लास्टिक कचरा विदेशों से आया था। वहीं, 2017-18 में 1.81 लाख टन और 2018-19 में 2.18 लाख टन प्लास्टिक कचरा आयात हुआ। इसी साल अप्रैल तक 19,305 टन कचरा विदेशों से आ चुका है। ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन से जुड़े हितेन बताते हैं कि देशभर में कई रिसाइकलिंग यूनिट हैं। 60 से 80 ऐसी जगहें भी हैं, जहां पर अनाधिकारिक तौर पर प्लास्टिक रिसाइकल होता है। 2% से 5% प्लास्टिक कचरा रिसाइकल नहीं हो पाता। इसकी वजह से ही पर्यावरण को नुकसान है। ज्यादातर लोग बचा हुआ खाना प्लास्टिक की थैलियों में भरकर फेंक देते हैं। इससे उन्हें इकट्ठा करना मुश्किल हो जाता है। अगर यही कचरा इकट्ठा हो जाए तो इससे पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
प्लास्टिक से ईंधन बना सकते हैं, कोयले की जगह इसका इस्तेमाल हो सकता है
- केंद्र सरकार से जुड़े पर्यावरण विशेषज्ञ एनपी शुक्ला बताते हैं कि हमें “वेस्ट टू वेल्थ” पर चलना चाहिए। हम प्लास्टिक के जरिए ईंधन बना सकते हैं। जब पॉलीथीन को 600 डिग्री से ज्यादा तापमान पर जलाया जाता है, तो उससे ईंधन निकाला जा सकता है। 600 डिग्री से कम तापमान पर जलाने से डायऑक्सीन और फ्यूरॉन गैस निकलती है, जो बहुत खतरनाक होती हैं।
- पॉलीथीन की ज्वलनशीलता कोयले के मुकाबले 3 गुना होती है। 1 किलो पॉलीथीन से 3 किलो कोयला बचा सकते हैं। इसका इस्तेमाल सीमेंट फैक्टरी में हो सकता है, क्योंकि सीमेंट की भट्टियों का तापमान 800 डिग्री सेल्सियस होता है। अगर हम 1% कोयले को भी प्लास्टिक से रिप्लेस कर लेते हैं तो इससे पर्यावरण को बहुत फायदा होगा। हम सड़क बनाने में भी प्लास्टिक बनाने का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए नॉन-रिसाइकलेबल प्लास्टिक को सीमेंट इंडस्ट्री या एनर्जी प्लांट में प्रोसेसिंग के लिए भेज सकते हैं, जहां इनका सही इस्तेमाल हो सके।
प्लास्टिक मीथेन गैस छोड़ता है जो Co2 से 30 गुना खतरनाक
सीएसई के दिनेश राज बंदेला कहते हैं कि सिंगल यूज प्लास्टिक का निपटान सही तरीके से नहीं हो सकता। इस वजह से यह जमीन या डंपसाइट पर पड़ा रहता है। वहां यह बायोडिग्रेडेबल वेस्ट से मिलकर मीथेन गैस छोड़ता है। मीथेन कार्बन डाय ऑक्साइड की तुलना में 30 गुना हानिकारक है। मीथेन जलवायु परिवर्तन के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है।
भारत में प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल को लेकर कानून, फिर भी इनका इस्तेमाल क्यों होता है?
- देश में 50 माइक्रोन मोटाई से कम के प्लास्टिक के उत्पादन, आयात, स्टोरेज, विक्रय और परिवहन पर प्रतिबंध है। इसके बाद भी इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है। इस बारे में मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व चेयरमैन और वर्तमान में केंद्र सरकार में पर्यावरण विशेषज्ञ एनपी शुक्ला बताते हैं कि कई राज्यों में प्लास्टिक कैरी-बैग (पॉलीथीन) पर पूरी तरह प्रतिबंध है, लेकिन पॉलीथीन हमारी लाइफस्टाइल में इतना रच-बस गया है कि लोग चाहकर भी इसे इस्तेमाल करना बंद नहीं करते।
- हितेन कहते हैं कि भारत की आबादी में सबसे बड़ा हिस्सा मध्यम वर्ग का है। इनकी खरीददारी डे-टू-डे बेसिस पर होती है। इससे प्लास्टिक बैग की मांग बढ़ती है, क्योंकि यह सस्ता भी होता है और इससे सामान लाने-ले जाने में आसानी होती है। पॉलीथीन की जगह कागज या कपड़े के बैग का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन पॉलीथीन बनाने में जितना कार्बन फुटप्रिंट होता है, उससे कहीं ज्यादा कागज या कपड़े के बैग बनाने में होता है। इसलिए, ये विकल्प भी पर्यावरण के लिए सही नहीं हैं।
हर भारतीय सालाना 11 किलो प्लास्टिक इस्तेमाल करता है
फिक्की की फरवरी 2017 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में हर व्यक्ति सालाना 11 किलोग्राम प्लास्टिक इस्तेमाल करता है। अमेरिका में इससे 10 गुना ज्यादा इस्तेमाल होता है। वहां हर व्यक्ति सालाना 109 किलोग्राम प्लास्टिक यूज करता है। भारत की आबादी ज्यादा होने के कारण तकरीबन 5.5 लाख टन प्लास्टिक नदी-नालों से होते हुए समुद्र में मिल जाता है। नेचर कम्युनिकेशन की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, सालाना 1.10 लाख टन प्लास्टिक कचरा गंगा से बहकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, सालाना 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्र में जाता है। इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा।
प्लास्टिक बैग या पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाना नामुमकिन
- प्लास्टिक मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन से जुड़े हितेन बताते हैं कि देश में सालाना 1.70 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक की खपत होती है। इसमें से 7-10% पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है। अब पैकेजिंग के लिए कोई दूसरा तरीका नहीं निकाला जा सकता। हालांकि, जहां हमें प्लास्टिक की जरूरत नहीं, वहां इसका इस्तेमाल बंद कर सकते हैं। जैसे- प्लास्टिक की चम्मच से खाने के बजाय स्टील की चम्मच से खाना खाएं। या फिर जहां प्लास्टिक की जरूरत नहीं है, वहां इसका दूसरा विकल्प तलाश लें। पर्यावरण को जो नुकसान है, वो प्लास्टिक का प्रबंधन नहीं होने से है।
- पर्यावरण विशेषज्ञ एनपी शुक्ला भी यही बात कहते हैं। उनके मुताबिक, पन्नी से लेकर हवाई जहाज तक, सबकुछ प्लास्टिक से ही बनाया जाता है। इसलिए प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना नामुमकिन-सा है। हम पॉलीथीन पर जरूर प्रतिबंध लगा सकते हैं, लेकिन उसके बाद भी हमें इसके प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए। प्रतिबंध प्रभावी नहीं रहता, इसलिए प्लास्टिक का इस्तेमाल जारी रहता है। हमें प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन की जरूरत है क्योंकि प्लास्टिक डिस्पोजेबल बड़ी समस्या है। अगर इसका प्रबंध कर हम सही इस्तेमाल करें तो पर्यावरण को बचा सकते हैं।
सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे प्लास्टिक कचरे का सही प्रबंध हो सके
हितेन भेड़ा कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने सही मुद्दा उठाया है लेकिन इस पर एक ऐसी नीति की जरूरत है, जिससे किसी का नुकसान न हो। वे कहते हैं कि सरकार को इंडस्ट्री और समाज की जरूरतों को समझना चाहिए और उस हिसाब से नीति बनानी चाहिए। अगर उन्हें लग रहा है कि इस प्लास्टिक से पर्यावरण को नुकसान है, तो उसे सिंगल यूज प्लास्टिक की कैटेगरी में डाले और उसके उत्पादन पर प्रतिबंध लगाए। प्लास्टिक इंडस्ट्री में लाखों लोग काम करते हैं और अगर इस पर प्रतिबंध लगता है, तो इससे इन लोगों का रोजगार छिन जाएगा। इसलिए एक ऐसी नीति बने, जिसमें सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाए।