- प्लूमस लेक इलाके के रहने वाले फ्रांसिस और रोजमैरी हाई स्कूल के दिनों से मैचिंग के कपड़े पहन रहे हैं
- वे बताते हैं कि मैचिंग कपड़ों को लोगों ने नोटिस किया तो उन्होंने इसे अपनी आदत में शामिल कर लिया
Dainik Bhaskar
Aug 21, 2019, 03:34 PM IST
कैलिफोर्निया. प्लूमस लेक इलाके के रहने वाले 87 वर्षीय फ्रांसिस और रोजमैरी बीते 70 सालों से मैचिंग के कपड़े पहन रहे हैं। दोनों की पहली मुलाकात मिडिल स्कूल में हुई थी, हाई स्कूल के दिनों से दोनों से मैचिंग के कपड़े पहनना शुरू किया था, जो अब तक जारी है। दाेनों अगले महीने अपनी शादी की 68वीं सालगिरह मनाने जा रहे हैं। फ्रांसिस और रोजमैरी क्लोन्तज अपने कपड़ों को लेकर तबसे सतर्क हैं, जब हाईस्कूल में उन्होंने नया-नया डेट पर जाना शुरू किया था। रोजमैरी पुराने दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि जब वे हाईस्कूल में थे तो पहली बार उसकी मां ने उन दोनों को मैचिंग टी-शर्ट दी थीं। उनके मैचिंग कपड़ों को लोगों ने नोटिस किया तो उन्होंने इसे अपनी आदत में शामिल कर लिया।
रोजमैरी दुनिया के सबसे सुंदर चीज, 19 साल में शादी की थी
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फ्रांसिस और रोजमैरी कई दशकों तक प्लूमस लेक इलाके के चर्च में भी साथ-साथ गाते रहे हैं। फ्रांसिस कहते हैं कि ‘जब मैंने रोजमैरी को देखा था, तो वह मुझे दुनिया की सबसे सुंदर चीज लगी। जब हम सीनियर कक्षा में आए तो हमने साथ-साथ घूमना शुरू किया। हम एक-दूसरे के साथ बाहर जाने लगे। हम दोनों ने 19 साल की उम्र में ही शादी कर ली।’
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रोजमैरी कहती हैं, ‘फ्रांसिस को कपड़े चुनने का हुनर जरा भी नहीं आता है। वहीं रोजना तय करती हैं कि दोनों को क्या पहनना है।’ फ्रांसिस कहते हैं ‘मैंने कभी इस बात की परवाह ही नहीं की कि क्या पहनना है और क्या नहीं? वह जो भी मेरे सामने रखती है मैं पहन लेता हूं।’
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यह जोड़ा अपनी इतनी लंबी और शानदार वैवाहिक जिंदगी के लिए मैचिंग की इस आदत के अलावा कुछ और को भी श्रेय देता है। वे कहते हैं कि अगर आप आनंद को परिभाषित करना चाहते हैं तो वह है- ईश्वर प्रथम, बाकी द्वितीय और हम अंत में। बस हम इसी रास्ते पर चलते रहे और पता भी नहीं चला कि कब इतने साल गुजर गए।
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खाली समय में करते लोगों की मदद
‘सिंगिंग चैपलिंस’ के नाम से चर्चित यह जोड़ा अपना खाली समय स्थानीय अस्पतालों, चर्चों और आसपास के इलाके में जरूरतमंदों की सेवा करते हुए बिताता है। वे कहते हैं कि हम सप्ताह में दो दिन पादरी की भूमिका में होते हैं और हम इसे पसंद करते हैं। हम आज भी अस्पतालों में मरीजों के लिए गाते हैं। वे विशेष जरूरत वाले बच्चों के एक ग्रुप को पढ़ाते भी हैं। इनको वे ईश्वर के बच्चे कहते हैं।
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