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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

तमन्ना-ए-सरफरोशी और काकोरी कांड की दास्तान

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काकोरी कांड (काकोरी ट्रेन रोबरी) की एनिवर्सरी पर दास्तान-ए-तमन्ना-ए-सरफ़रोशी कार्यक्रम का आयोजन किया गया जीरकपुर के दीक्षांत ग्लोबल स्कूल के पीयूष मिश्रा कलचरल सेंटर में। इस दौरान दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी ने संगीत के जरिए काकोरी कांड की कहानी सुनाई। बोले कि 9 अगस्त 1925, इतिहास के पन्नों में यह दिन बहुत खास है। काकोरी कांड को अशफाकुल्लाह खां और रामप्रसाद बिस्मिल ने आठ साथियों के साथ मिलकर अंजाम दिया था। चलती ट्रेन में सरकारी खजाना लूटने की इस घटना ने ब्रिटिश सरकार की जड़े हिला दी। बोले – बिस्मिल ने फांसी से तीन दिन पहले अपनी आत्मकथा पूरी की थी। अशफाकुल्लाह और बिस्मिल की राजनैतिक विचारधारा और आजादी के लिए किए गए संघर्ष को भी बताया गया। इसमें उनका साथ दिया वेदांत भारद्वाज ने और लखनऊ घराने के शिवार्ग भट्टाचार्या ने। इसे अदब फाउंडेशन की ओर से आयोजित करवाया गया।

दीक्षांत ग्लाेबल स्कूल में काकोरी कांड की एनिवर्सरी पर म्यूजिकल कार्यक्रम अायोजित किया गया।

हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक थी इनकी दोस्ती

हिंदुस्तान की शान हैं अशफाक और बिस्मिल, दो जिस्म एक जान हैं अशफाक और बिस्मिल, मुसलमान में हिन्दू और हिन्दू में मुसलमान हैं अशफाक और बिस्मिल। यह दास्तान उनकी दोस्ती के बारे में भी बहुत कुछ बताती है, जो हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक थी। कहानी में बताया गया कि आज के दौर में जब धर्म और जाति पर लोगों को बांटने के लिए बहुत कुछ हो रहा है, ये दोनों दोस्त अलग-अलग धर्मों में पैदा होने के बावजूद साथ जीए और मरे। दोनों का जन्म एक शहर में हुआ, दोनों देश के लिए लड़े और शहीद हुए। इनका सपना एक ऐसे भारत का था, जहां धर्म-जाति के नाम पर भेदभाव न हो। हिमांशु बाजपेयी सुनाते हैं- जिसकी हर एक धुन में है मिल्लत (राष्ट्रवाद) की रागिनी, उस बांसुरी की तान हैं अशफाक और बिस्मिल।