- मोदी सरकार ने 21 जून को तीन तलाक को लेकर नया विधेयक लोकसभा में पेश किया था
- नए विधेयक ने फरवरी में तीन तलाक को लेकर पेश हुए अध्यादेश का स्थान लिया
- फरवरी में तीन तलाक विधेयक लोकसभा में पास हो गया था, पर राज्यसभा में अटक गया था
Dainik Bhaskar
Jul 25, 2019, 08:40 AM IST
नई दिल्ली. लोकसभा में गुरुवार को तीन तलाक विधेयक पर चर्चा के बाद उसे पारित किए जाने की संभावना है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने सांसदों को इसके लिए व्हिप जारी किया है और उनसे बहस के दौरान सदन में माैजूद रहने को कहा है। विधेयक में एक साथ तीन बार तलाक बोलकर तलाक दिए जाने (तलाक-ए-बिद्दत) को अपराध करार दिया गया है और साथ ही दोषी को जेल की सजा सुनाए जाने का भी प्रावधान किया गया है।
मोदी सरकार-2 के दूसरे कार्यकाल में संसद के पहले सत्र में 21 जून को सबसे पहला विधेयक तीन तलाक पर ही पेश किया था। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने बिल पेश करने को लेकर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद वोटिंग कराई गई। सरकार ने पहले कार्यकाल में तीन तलाक विधेयक को लोकसभा से पास करा लिया था, लेकिन राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण वहां पारित नहीं हो सका था। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया था कि नए विधेयक ने फरवरी में पेश हुए अध्यादेश का स्थान लिया है। जावड़ेकर ने उम्मीद जताई थी कि इस बार यह बिल राज्यसभा से भी पास करा लिया जाएगा।
कांग्रेस ने महिला सशक्तिकरण के दो मौके गंवाए, यह बिल उनके लिए मौका: मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून को बजट सत्र में धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा के जवाब में कांग्रेस से तीन तलाक बिल पर समर्थन की अपील की थी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस महिला सशक्तिकरण के दो मौके पहले ही गंवा चुकी है। तीन तलाक बिल उनके लिए तीसरा मौका है। 1950 के दशक में समान नागरिक संहिता का मौका आया था। लेकिन, तब कांग्रेस चूक गई और ‘हिन्दू कोड’ विधेयक ले आई। इसके 35 साल बाद शाहबानो वाले मामले में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने का मौका आया था, तब भी कांग्रेस चूक गई। लेकिन अब इसे (तीन तलाक) किसी धर्म, संप्रदाय से जोड़कर देखने की जरूरत नहीं है।
तीन तलाक पर नया विधेयक क्यों लाना पड़ा?
संसदीय नियमों के मुताबिक, जो विधेयक सीधे राज्यसभा में पेश किए जाते हैं, वो लोकसभा भंग होने की स्थिति में स्वत: समाप्त नहीं होते। जो विधेयक लोकसभा में पेश किए जाते हैं और राज्यसभा में लंबित रहते हैं, वे निचले सदन यानी लोकसभा भंग होने की स्थिति में अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। तीन तलाक बिल के साथ भी यही हुआ और इसी वजह से सरकार को नया विधेयक लाना पड़ रहा है।
फरवरी में लोकसभा में पास हो गया था बिल
लोकसभा में तीन तलाक पर कानूनी रोक वाला विधेयक फरवरी में पारित हो गया था। राज्यसभा में एनडीए सरकार के पास बहुमत नहीं था, इसलिए बिल वहां अटका रहा। अब सरकार बजट सत्र में इसे पेश करने और दोनों सदनों से पास कराने की उम्मीद कर रही है। अध्यादेश को भी कानून में तभी बदला जा सकता है जबकि संसद सत्र आरंभ होने के 45 दिन के भीतर उसे पास करा लिया जाए। अन्यथा अध्यादेश की अवधि समाप्त हो जाती है।
नए विधेयक में ये हुए थे बदलाव
- अध्यादेश के आधार पर तैयार नए बिल के मुताबिक, आरोपी को पुलिस जमानत नहीं दे सकेगी। मजिस्ट्रेट पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर जमानत दे सकते हैं। उन्हें पति-पत्नी के बीच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा।
- बिल के मुताबिक, मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा। आरोपी को उसका भी गुजारा देना होगा। तीन तलाक का अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य एफआईआर दर्ज कराएं।