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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

चंद्रयान-2 का वजन पहले मिशन से 3 गुना ज्यादा, रोवर की रफ्तार 1 सेमी प्रति सेकंड रहेगी

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  • चंद्रयान-1 का वजन 1380 किलो था, चंद्रयान-2 का वजन 3877 किलोग्राम रहेगा
  • चंद्रयान-2 के 4 हिस्से, पहला- जीएसएलवी मार्क-III, भारत का बाहुबली रॉकेट कहा जाता है, पृथ्वी की कक्षा तक जाएगा
  • दूसरा- ऑर्बिटर, जो चंद्रमा की कक्षा में सालभर चक्कर लगाएगा
  • तीसरा- लैंडर विक्रम, जो ऑर्बिटर से अलग होकर चांद की सतह पर उतरेगा
  • चौथा- रोवर प्रज्ञान, 6 पहियों वाला यह रोबोट लैंडर से बाहर निकलेगा और 14 दिन चांद की सतह पर चलेगा

Dainik Bhaskar

Jul 13, 2019, 08:46 AM IST

नई दिल्ली. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) का चंद्रयान-2 मिशन 15 जुलाई को तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन सेंटर से लॉन्च होगा। इसके 6 या 7 सितंबर को चांद की सतह पर उतरने का अनुमान है। इसे भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। इस रॉकेट में तीन मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) होंगे। इस मिशन के तहत इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर को उतारेगा। इस बार मिशन का वजन 3,877 किलो होगा। यह चंद्रयान-1 मिशन (1380 किलो) से करीब तीन गुना ज्यादा है। लैंडर के अंदर मौजूद रोवर की रफ्तार 1 सेमी प्रति सेकंड रहेगी। दैनिक भास्कर प्लस ऐप आपको चंद्रयान-2 मिशन में शामिल चार अहम उपकरणों के बारे में बता रहा है…

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर दो गड्ढों- मंजिनस सी और सिमपेलियस एन के बीच चंद्रयान-2 का लैंडर और रोवर उतरेगा। इस मिशन के साथ 13 पेलोड भेजे जाएंगे। इनमें से 8 पेलोड ऑर्बिटर में, 3 लैंडर में और 2 रोवर में रहेंगे।

1) जीएसएलवी मार्क-III : 640 टन वजनी स्पेसक्राफ्ट, इसमें थ्री स्टेज इंजन है
चंद्रयान-2 को इसरो के बाहुबली कहे जाने वाले रॉकेट जीएसएलवी मार्क-III से भेजा जाएगा। यह रॉकेट 43X43 मीटर लंबा और 640 टन वजनी है। इसके साथ 3,877 किलो वजनी मॉड्यूल भेजे जाएंगे। यह थ्री स्टेज रॉकेट है। पहले स्टेज में इंजन ठोस ईंधन पर काम करता है और इसमें लगी दो मोटर तरल ईंधन से चलेंगी। दूसरे स्टेज में इंजन तरल ईंधन से चलता है, जबकि तीसरा इंजन क्रायोजेनिक है। 

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2) ऑर्बिटर : वजन 2,379 किलो
चंद्रयान-2 का पहला मॉड्यूल ऑर्बिटर है। इसका काम चांद की सतह का निरीक्षण करना है। यह पृथ्वी और लैंडर (विक्रम) के बीच कम्युनिकेशन का काम भी करेगा। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद यह एक साल तक काम करेगा। ऑर्बिटर चांद की सतह से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाएगा। इसके साथ 8 पेलोड भेजे जा रहे हैं, जिनके अलग-अलग काम होंगे…

  • चांद की सतह का नक्शा तैयार करना। इससे चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाने की कोशिश होगी।
  • मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम की मौजूदगी का पता लगाना।
  • सूरज की किरणों में मौजूद सोलर रेडिएशन की तीव्रता को मापना।
  • चांद की सतह की हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें खींचना। 
  • सतह पर चट्टान या गड्ढे को पहचानना ताकि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग हो।
  • चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की मौजूदगी और खनिजों का पता लगाना।
  • ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाना।
  • चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना।
     

3) लैंडर ‘विक्रम’ : वजन 1,471 किलो  
इसरो का यह पहला मिशन है, जिसमें लैंडर जाएगा। इस लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। विक्रम लैंडर ही चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। सॉफ्ट लैंडिंग उसे कहते हैं, जिसमें बिना किसी नुकसान के लैंडर चांद की सतह पर उतरता है। लैंडर के साथ 3 पेलोड भेजे जा रहे हैं। इनका काम चांद की सतह के पास इलेक्ट्रॉन डेंसिटी, यहां के तापमान में होने वाले उतार-चढ़ाव और सतह के नीचे होने वाली हलचल (भूकंप), गति और तीव्रता जानना होगा। 
 

4) रोवर ‘प्रज्ञान’ : वजन 27 किलो 
लैंडर के अंदर ही रोवर (प्रज्ञान) रहेगा। यह प्रति 1 सेंटीमीटर/सेकंड की रफ्तार से लैंडर से बाहर निकलेगा। इसे निकलने में 4 घंटे लगेंगे। बाहर आने के बाद यह चांद की सतह पर 500 मीटर तक चलेगा। यह चंद्रमा पर 1 दिन (पृथ्वी के 14 दिन) काम करेगा। इसके साथ 2 पेलोड जा रहे हैं। इनका उद्देश्य लैंडिंग साइट के पास तत्वों की मौजूदगी और चांद की चट्टानों-मिट्टी की मौलिक संरचना का पता लगाना होगा। पेलोड के जरिए रोवर ये डेटा जुटाकर लैंडर को भेजेगा, जिसके बाद लैंडर यह डेटा इसरो तक पहुंचाएगा।