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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

एटमी संयत्र को शिप से खींचकर आर्कटिक ले जाएगी पुतिन सरकार, पर्यावरणविदों ने तैरती तबाही बताया

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  • रूस सरकार को लोमोनोसोव परमाणु संयंत्र बनाने में दो दशक से ज्यादा का समय लगा 
  • अब सरकार इस संयंत्र को 6.5 हजार किमी दूर आर्कटिक सर्किल के मध्य में पहुंचाना चाहती है

Dainik Bhaskar

Jul 09, 2019, 08:04 AM IST

मॉस्को. रूस शिप के जरिए एक परमाणु संयंत्र को 6500 किमी दूर आर्कटिक सर्किल के मध्य में स्थापित करेगा। दुनिया पुतिन सरकार के इस जोखिम से आश्चर्यचकित है, वहीं आलोचकों ने इसे समुद्र पर ‘तैरती तबाही’ बताया है। दरअसल, रूस ने दो दशक पहले ही आर्कटिक में ऊर्जा का स्रोत तैयार करने की योजना बना ली थी। इसके बाद वैज्ञानिकों ने ‘अकैडेमिक लोमोनोसोव’ परमाणु संयंत्र का निर्माण शुरू कर दिया था। 

हाल ही में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आर्कटिक विस्तार योजना लॉन्च करने के बाद संयंत्र के निर्माण में तेजी लाई गई और दो साल के अंतराल में इसे तैयार कर लिया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, फिलहाल यह संयंत्र रूस के पश्चिम में स्थित मुरमांस्क में एक 472 फीट लंबे प्लेटफॉर्म पर रखा गया है। जल्द ही इसे आर्कटिक से लगे पेवेक बंदरगाह से आर्कटिक के लिए रवाना कर दिया जाएगा। 

क्या है परमाणु संयंत्र को आर्कटिक ले जाने का मकसद?
पुतिन के जोर देने के बाद वैज्ञानिकों ने बेहद कम समय में इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया। पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि वह रूस और उसके आसपास के खाली क्षेत्र को आर्थिक तौर पर आगे बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए वे आर्कटिक में की गहराई में मौजूद तेल और गैस के खजाने को निकालेंगे। न्यूक्लियर प्लांट के जरिए इनकी खोज में लगी कंपनियों को बिजली की सप्लाई की जाएगी। फिलहाल रूस के आर्कटिक से लगे क्षेत्र में सिर्फ 20 लाख लोग रहते हैं, लेकिन यहां से ही देश का 20% जीडीपी आता होता है। 

पर्यावरणविदों ने किया विरोध

एक बार गंतव्य पर स्थापित होने के बाद यह सुदूर उत्तर का पहला पावर प्लांट होगा। हालांकि, पर्यावरणविदों ने रूस द्वारा की जा रही एटमी संयंत्र की शिफ्टिंग का विरोध किया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि एक परमाणु संयंत्र को साफ और स्वच्छ इलाके में ले जाने से वहां के लोगों पर खतरा पैदा हो जाएगा। ग्रीनपीस इंटरनेशनल ने इसे तैरती तबाही (फ्लोटिंग चेरनोबिल) नाम दिया है। 

क्या है चेरनोबिल? 
इस प्रोजेक्ट का पक्ष लेने वाले लोगों का कहना है कि पावर प्लांट से किसी को भी खतरा नहीं होगा। दरअसल, सोवियत सरकार के अंतर्गत आने वाले यूक्रेन में अप्रैल 1986 को चेरनोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट में सेफ्टी टेस्ट के दौरान धमाका हो गया था। इसमें करीब 31 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन रेडिएशन की वजह से करोड़ों लोगों की जान पर खतरा पैदा हो गया था। यूएन के 2005 के अनुमान के मुताबिक, रेडिएशन की वजह से देशभर में 9 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी थीं। वहीं ग्रीनपीस ने मृतकों का आंकड़ा दो लाख के पार बताया था।