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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

5 महीने का प्रीमेच्योर बेबी हुआ, वजन था 487 ग्राम, 75 दिन वेंटीलेटर, 99 दिन ऑक्सीजन पर रहा, अब बिल्कुल स्वस्थ

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  • कांगड़ा के रहने वाले पति-पत्नी को शादी के 13 साल बाद आईवीएफ के जरिए हुआ बच्चा

Dainik Bhaskar

Jul 06, 2019, 05:41 AM IST

चंडीगढ़.  कांगड़ा के रहने वाले अर्चना शर्मा और सचिन शर्मा की उम्र 40 साल के आसपास है। शादी के 13 साल तक कोई बच्चा नहीं हुआ। चंडीगढ़ आईवीएफ के जरिए फर्स्ट अटेंप्ट में बच्चा कंसीव हुआ। लेकिन पहले हफ्ते से ही मां को दिक्कतें आना शुरू हो गईं। इस वजह से वे यहां एक प्राइवेट हाॅस्पिटल में 10 दिन रहीं। फिर उन्हें वापस कांगड़ा जाना पड़ा। वे वहां पर एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं। 

अर्चना को रोजाना तीन किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता था। ज्यादा दिक्कत होने पर उनका वाॅटर बैग फट गया, जिससे सारा पानी फैल गया। इससे बच्चे की जान को खतरा पैदा हो गया। इसी कंडीशन में वे कांगड़ा से चंडीगढ़ के हॉस्पिटल में आईं।  यहां पर उनका 5 महीने का प्रीमेच्योर बेबी जन्मा। जन्म के बाद बच्चे को  निक्कू लेवल थ्री में ले जाया गया। 487 ग्राम के बच्चे के सभी ऑर्गन पूरी तरह से डेवलप नहीं हुए थे, जैसे कि दिल, किडनी, आंतड़ियां, लीवर आदि। बच्चे को नॉर्मल अवस्था में लाने के लिए 75 दिन उसे वेंटीलेटर पर रखा गया।

बच्ची की सभी न्यूट्रीशियंस सीधे खून में नाड़ियों के जरिए डाली गईं। चाहे वो फेट, प्रोटीन या कार्बोहाईडेट्रस हों। इन सभी न्यूट्रीशियंस का संतुलन बनाए रखने के लिए हर एक घंटे उसकी मॉनिटरिंग की गई। 75 दिन बाद बच्चे को वेंटीलेटर से हटा दिया। इसके बाद नन्हे बच्चे दुष्यंत को 99 फुल ऑक्सीजन पर रखा गया। इस दौरान बच्चे को 22 बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन दिए गए। एक टाइम पर बच्चे के प्लेटलेट्स 1000 तक पहुंच गए थे। चार महीने तक इलाज चला। डॉक्टर्स की मेहनत और मां-बाप की दुआ से दुष्यंत ठीक हो गया। शुक्रवार को उसे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। 

रेयर ऑफ दि रेयरेस्ट केस 
बच्चे के पिता सचिन शर्मा ने कहा कि डॉक्टर्स ने प्रयास किया और हमने उनके प्रयास को सहनशीलता के साथ स्वीकार किया। आज हम एक बच्चे के मां-बाप बन सके हैं। सचिन शर्मा बद्दी में एक फार्मा कंपनी में बतौर माइक्रोबायोलॉजिस्ट के पद पर कार्यरत हैं। डॉ. रमनीक बेदी ने बताया कि जहां तक इस तरह के बच्चों के बचने का सवाल है तो पूरी दुनिया में 20 से 25 फीसदी बच्चे ही सर्वाइव कर पाते हैं, जबकि भारत में यह रेयर ऑफ द रेयरेस्ट होते हैं।