- तीन साल में दर्ज दो एफआईआर में अंतर सेे पुलिस अफसरों की भूमिका पर सवाल
- 14 अक्टूबर 2015 को दर्ज एफआईआर में जख्मी प्रदर्शनकारियों का जिक्र नहीं
Dainik Bhaskar
Jun 19, 2019, 06:29 AM IST
फरीदकोट (परविंदर अरोड़ा). कोटकपूरा फायरिंग में 3 साल में दर्ज दो एफआईआर में अंतर ने पुलिस अफसरों की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पहली एफआईआर में जिन प्रदर्शनकारियों को नामजद किया गया, उन्हें एसआईटी ने गवाह बना लिया। अक्टूबर 2015 के बरगाड़ी बेअदबी प्रकरण के बाद कोटकपूरा में 14 अक्टूबर की सुबह करीब 7 बजे प्रदर्शनकारियों पर बलप्रयोग संबंधी मामले को लेकर एसआईटी ने पिछले दिनों फरीदकोट कोर्ट में चालान पेश कर दिया है।
14 अक्टूबर 2015 की घटना के तुरंत बाद काेटकपूरा सिटी थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी गुरदीप सिंह पंधेर के दर्ज बयानाें के अनुसार, बरगाड़ी बेअदबी के बाद कोटकपूरा में रोष प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियाें का व्यवहार भड़काने व हिंसा फैलाने वाला था। इनके पास कई घातक हथियार थे। ईंट-पत्थरों का भंडार भी जमा कर रखा था। 12 से 14 अक्टूबर के बीच पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियाें के साथ कई बार बातचीत कर उन्हें समझाने का प्रयास किया, लेकिन ये नहीं माने।
पुलिस पर हमले का आरोप :
14 अक्टूबर को पुलिस की चेतावनी के बाद भी जब प्रदर्शनकारी नहीं माने तो पुलिस ने गिरफ्तार करना शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हमला कर दिया। पुलिस ने बचाव में पानी की बौछारें छोड़ीं। इस घटनाक्रम में इंस्पेक्टर भल्ला सिंह के अलावा 3 एएसआई, 9 हवलदार और 7 सिपाही घायल हो गए थे। पुलिस ने भाई पंथप्रीत सिंह खालसा, अमरीक सिंह अजनाला, भाई रणजीत सिंह ढडरियां वाला समेत करीब 16 पर मामला दर्ज कर दिया। इस एफआईआर में इस घटना में घायल किसी भी प्रदर्शनकारी का जिक्र तक नहीं है। यह मामला अब भी जांच के अधीन होने के करण अदालत में नहीं पहुंचा।