- टेनिस के 4 सबसे बड़े टूर्नामेंट में से एक फ्रेंच ओपन 1891 से खेला जा रहा
- टूर्नामेंट के मुकाबले रोलां गैरो कोर्ट पर खेले जाते हैं, यह लाल मिट्टी के लिए जाना जाता है
- रोलां गैरो प्रथम विश्व युद्ध के हीरो थे, 1913 में भूमध्य सागर पार करने वाले पहले पायलट
- रोलां की शहादत के 10 साल बाद फ्रेंच ओपन का नाम उनके नाम पर रखा गया
पेरिस. फ्रेंच ओपन कहें या रोलां गैरो, बात एक ही है। इस ग्रैंड स्लैम का आधिकारिक नाम रोलां गैरो ही है। यहां के स्टेडियम और टेनिस कोर्ट को भी रोलां गैरो कहते हैं। इस नाम के पीछे की कहानी भी कुछ अलग है। दरअसल रोलां गैरो फ्रांस के फाइटर पायलट और प्रथम विश्व युद्ध के हीरो थे। उन्होंने दुश्मन देश के चार लड़ाकू विमानों को अपनी ईजाद की हुई तकनीक की मदद से मार गिराया था। वे पहले ऐसे एविएटर थे, जिन्होंने अपने एयरक्राफ्ट से भूमध्य सागर पार किया था। उनकी शहादत के 10 साल बाद उनके सम्मान में स्टेडियम का नाम रोलां गैरा पड़ गया।
रोलां गैरो स्टेडियम 91 साल पुराना
- फ्रेंच ओपन को इस साल 128 साल पूरे हो गए। 1891 में यह छोटे मुकाबलों से शुरू हुआ था, जो फ्रेंच क्लब के सदस्यों के बीच खेले जाते थे। तब यह फ्रेंच क्ले कोर्ट चैम्पियनशिप के नाम से जाना जाता था। पहले यह पेरिस के दो अलग-अलग टेनिस कोर्ट में खेला जाता था। 1924 तक इसमें फ्रांस के खिलाड़ी ही भाग ले सकते थे, लेकिन 1925 से यह विदेशी खिलाड़ियों के लिए भी खोल दिया गया। इसी साल से इसका नाम फ्रेंच क्ले कोर्ट चैम्पियनशिप से फ्रेंच ओपन हो गया।
- 3 साल बाद 1928 में डेविस कप के लिए पेरिस में एक स्टेडियम बनाया गया। इसका नाम रोलां गैरो रखा गया। बाद में यहीं पर फ्रेंच ओपन के मुकाबले खेले जाने लगे। इससे 10 साल पहले ही रोलां गैरो पहले विश्व युद्ध में शहीद हो चुके थे। उनके एक मित्र और राजनेता ने उनकी सेवाओं को याद रखने के लिए स्टेडियम का नाम रोलां गैरो करने की मांग की थी।
एक एयर शो ने गैरो को बिजनसमैन से एविएटर बनाया
1888 में फ्रांस के रियूनियन आइलैंड में जन्मे रोलां गैरो ने 21 की उम्र में अपने करियर की दिशा बदली और वे एक बिजनसमैन से एविएटर बने। अगस्त 1909 में एक एयर शो को देखने के बाद उन्होंने एक प्लेन खरीदा और इसे उड़ाना सीखा। सितंबर 1911 में उन्होंने 3910 मीटर की ऊंचाई पर एयरक्राफ्ट उड़ाकर अपना ही एक रिकॉर्ड तोड़ा। वे एयर शो में हमेशा हिस्सा लेते थे। कुछ ही सालों में वे लोकप्रिय हो गए थे। यूरोप के अन्य देशों और दक्षिण अमेरिकी देशों में भी उनके कई फैन्स थे।
भूमध्य सागर को पार करने वाली दुनिया की पहली फ्लाइट
23 सितंबर 1913 को भरी एक उड़ान उनकी सबसे लंबी उड़ान रही। यह उड़ान भूमध्य सागर पार करने के लिए थी। सुबह 5:47 बजे 200 लीटर फ्यूल और 60 लीटर कस्तोर ऑइल के साथ उन्होंने फ्रेंच रिवेरा से ट्यूनीशिया के लिए उड़ान भरी। प्लेन के दो इंजन फेल होने के बावजूद इस मैकेनिकल जीनियस ने दोपहर 1:40 पर ट्यूनिशिया में सेफ लैंडिंग की। उनके विमान में महज 5 लीटर ईंधन बचा था। उनकी यह उड़ान 780 किलोमीटर की थी। उस दौर में यह एक बेहद लंबी दूरी थी। उनकी इस उड़ान ने उन्हें भूमध्य सागर पार करने वाला पहला एविएटर बनाया।
ऑन बोर्ड मशीनगन के आविष्कारक
जब प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो गैरो ने एयर शो छोड़कर फ्रांस की ओर से लड़ने का निर्णय लिया। उस दौर में लड़ाकू विमान बेहद कम हथियारों से लैस होते थे। ऐसे समय में गैरो ने ऑन-बोर्ड मशीनगन से लैस पहला सिंगल-सीटर लड़ाकू विमान विकसित किया जो प्रोपेलर के जरिए फायर कर सकता था। यह एक क्रांतिकारी आविष्कार था। उन्होंने इसकी मदद से अप्रैल 1915 में दो हफ्ते के अंदर दुश्मन देश जर्मनी पर एक के बाद एक तीन जीत हासिल की। हालांकि इसके बाद जर्मन एंटी एयरक्राफ्ट डिफेंस सिस्टम ने उनके विमान को हिट किया और उन्हें अपने एयरक्राफ्ट की लैंडिंग करानी पड़ी। यहां उन्हें गिरफ्त में ले लिया गया। तीन साल बाद वे जर्मन सेना की गिरफ्त से भाग निकले।
तीन साल बाद दोबारा विमान उड़ाने लगे
जर्मनी की गिरफ्त में तीन साल रहने के बाद उनका स्वास्थ्य और विमान उड़ाने की क्षमताओं में बेहद फर्क पड़ा। उन्हें आंखों से कम दिखाई देने लगा था, लेकिन इसके बावजूद वे नजर का चश्मा पहनकर विमान उड़ाते थे। फ्रांस की सेना ने उन्हें आराम करने और घर बैठकर वायुसेना के सलाहकार के रूप में काम करने को कहा, लेकिन वे नहीं माने और युद्ध में फिर लौटे। हालांकि, इस बार वे जर्मन लड़ाकू विमान का शिकार हो गए। अपने जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले यानी 5 अक्टूबर 1918 को जर्मन प्लेन फोकर डी-7 ने उनके एयरक्राफ्ट पर गोलियां बरसाईं। बेल्जियम बॉर्डर के करीब उनका प्लेन क्रैश हो गया और वे शहीद हो गए।