- 54% यूजर्स फ्री में फैंटेसी स्पोर्ट्स खेल रहे, जबकि 8% लोग 1 हजार रुपए से ज्यादा खर्च कर रहे
- अभी फैंटेसी स्पोर्ट्स गैर-कानूनी नहीं, समर्थक इसे विशेषज्ञता का खेल मानते हैं
- फैंटेसी स्पोर्ट्स को इसके विरोधी डिजिटल सट्टेबाजी करार देते हैं
नई दिल्ली. भारत में 18 साल पहले फैंटेसी स्पोर्ट्स आया था। लेकिन 2016 के बाद इसने जोर पकड़ा और अब वेबसाइट्स या ऐप्स पर इसे खेलने वालों की संख्या 5 करोड़ तक पहुंच चुकी है। फैंटेसी स्पोर्ट्स में यूजर्स मोबाइल ऐप या वेबसाइट पर अपनी वर्चुअल टीम बनाता है और प्वॉइंट्स कमाता है। प्वॉइंट्स के हिसाब से यूजर्स की कमाई भी होती है। देश में चल रहे गेमिंग ऐप्स में फैंटेसी स्पोर्ट्स के दो तरह के मॉडल हैं। पहला- फ्री टू प्ले यानी खेलने के लिए किसी तरह की कोई फीस नहीं देनी पड़ती। जबकि दूसरा- पे टू प्ले, जिसमें एंट्री फीस या कॉन्टेस्ट खेलने के लिए पैसे लिए जाते हैं।
ऑनलाइन गेमिंग में 20% यूजर्स फैंटेसी स्पोर्ट्स के
इंडियन फेडरेशन ऑफ स्पोर्ट्स गेमिंग (आईएफएसजी) की मार्च 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 25 करोड़ लोग ऑनलाइन गेम्स खेलते हैं। इनमें से 20% यानी 5 करोड़ यूजर्स फैंटेसी स्पोर्ट्स के हैं। फैंटेसी स्पोर्ट्स की शुरुआत अमेरिका में 1952 में ही हो चुकी थी, लेकिन भारत में इसकी शुरुआत 2001 में ईएसपीएन-स्टार स्पोर्ट्स ने मिलकर की। हालांकि, 2003 में इसे बंद कर दिया गया।
आईएफएसजी के मुताबिक, जून 2016 से लेकर फरवरी 2019 तक फैंटेसी स्पोर्ट्स खेलने वालों की संख्या 25 गुना बढ़ी है। जून 2016 में फैंटेसी स्पोर्ट्स खेलने वालों की संख्या सिर्फ 20 लाख थी जो फरवरी 2019 तक बढ़कर 5 करोड़ से ज्यादा हो गई। वहीं, 2020 तक इनकी संख्या 10 करोड़ से ज्यादा होने की संभावना है।
ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों का रेवेन्यू 4 साल में 116% बढ़ा
देश में गेमिंग इंडस्ट्री का रेवेन्यू पिछले चार साल में दो गुना से ज्यादा बढ़ा। अगले 5 साल में इसके करीब तीन गुना बढ़ने की उम्मीद है। 2014 में गेमिंग इंडस्ट्री और फैंटेसी स्पोर्ट्स इंडस्ट्री का रेवेन्यू 20.3 अरब रुपए था। यह 2018 में 116% बढ़कर 43.8 अरब रुपए हो गया। 2023 तक रेवेन्यू 118.8 अरब रुपए होने का अनुमान है। देश में माय टीम 11, ड्रीम 11, फैन्टेन, हालाप्ले, 11 विकेट्स और स्टारपिक जैसी फैंटेसी स्पोर्ट्स कंपनियां हैं। इनमें भी 90% मार्केट पर सिर्फ ड्रीम 11 का ही कब्जा है। ड्रीम 11 इकलौती कंपनी है, जिसने पिछले 4 साल में सबसे ज्यादा ग्रोथ की है। फैंटेसी स्पोर्ट्स प्लेटफॉर्म पर क्रिकेट, कबड्डी, बास्केटबॉल, फुटबॉल जैसे गेम मौजूद हैं, लेकिन सबसे ज्यादा लोग क्रिकेट खेलना पसंद करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ड्रीम 11 के 85 फीसदी यूजर्स क्रिकेट खेलते हैं। हालांकि, 2015 में ड्रीम 11 पर 95 फीसदी यूजर्स क्रिकेट खेलते थे।
47% यूजर्स हफ्ते में एक बार खेलते हैं फैंटेसी स्पोर्ट्स
आईएफएसजी के सर्वे के मुताबिक, 47% यूजर्स हफ्ते में एक बार फैंटेसी स्पोर्ट्स खेलते हैं, जबकि 20% लोग हफ्ते में 5 बार से ज्यादा, 27% लोग हफ्ते में 2 से 3 बार और 6% लोग हफ्ते में 4 से 5 बार खेलते हैं। सर्वे के मुताबिक, 18 से 24 साल के 48%, 25 से 36 साल के 49% और 37 से 50 साल के 33% यूजर्स हफ्ते में सिर्फ एक बार फैंटेसी स्पोर्ट्स खेलते हैं।
54% यूजर्स फ्री में फैंटेसी स्पोर्ट्स खेलते हैं, जबकि 8% लोग 1 हजार रुपए से ज्यादा खर्च करते हैं। 9% लोग 100 रुपए तक खर्च करते हैं, जबकि 11% लोग 100 से 300 रुपए, 10% लोग 300 से 500 रुपए तक और 8% लोग 500 से 1000 रुपए तक खर्च करते हैं। इनमें भी 3 लाख रुपए से कम आय वाले 27% लोग फ्री में खेलते हैं। जबकि, 3 से 5 लाख रुपए तक की आय वाले 63%, 5 से 10 लाख रुपए इनकम वाले 56% और 10 लाख रुपए से ज्यादा की आय वाले 69% लोग फ्री में खेलते हैं।
भारत में क्या है सट्टेबाजी को लेकर कानून?
पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट-1867 के अनुसार, देश में सट्टेबाजी और जुए को अपराध माना गया है। ये दोनों राज्य के विषय हैं। राज्य चाहें तो इसके लिए अपने हिसाब से कानून बना सकते हैं। गोवा, दमन और द्वीप, तेलंगाना और सिक्किम में सट्टेबाजी और जुए से जुड़ी कई गतिविधियों को कानूनी मान्यता मिली हुई है। 1966 में सुप्रीम कोर्ट ने घुड़दौड़ और रमी में सट्टेबाजी को मान्यता देते हुए कहा था कि ये संयोग का खेल नहीं है, बल्कि इसमें चतुराई और कुशलता की जरूरत होती है। जुलाई 2018 में लॉ कमीशन ने और इससे पहले लोढ़ा समिति ने क्रिकेट में सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता देने की सिफारिश की थी।
सट्टेबाजी वैध हो जाए तो सरकार को सालाना 20 हजार करोड़ का रेवेन्यू मिलेगा
स्टैटिस्टा की रिसर्च के मुताबिक, 2012 में भारत में 88 अरब डॉलर (करीब 6.10 लाख करोड़ रुपए) का सट्टा लगा था, जो 2018 में बढ़कर 130 अरब डॉलर (करीब 9 लाख करोड़ रुपए) का हो गया। एक अनुमान के मुताबिक, भारत के हर क्रिकेट मैच में करीब 1400 करोड़ रुपए का सट्टा लगता है। लोढ़ा समिति की रिपोर्ट में उदाहरण दिया गया था कि इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप के कुछ देशों में सट्टेबाजी लीगल है, जिससे इन देशों को टैक्स वसूलने से काफी फायदा होता है। अगर भारत में भी सट्टेबाजी को लीगल कर दिया जाता है तो सरकार को सालाना करीब 20 हजार करोड़ रुपए तक का रेवेन्यू मिल सकता है।
एक्सपर्ट व्यू/ फैंटेसी स्पोर्ट्स को लेकर कोई कानून नहीं, लेकिन इसे गैरकानूनी भी नहीं माना जाता
लीगल एक्सपर्ट विराग गुप्ता बताते हैं कि फैंटेसी स्पोर्ट्स को लेकर देश में अभी कोई अलग से कानून नहीं है, लेकिन फैंटेसी स्पोर्ट्स ऑनलाइन खेला जाता है। इसलिए इसके खिलाफ आईटी एक्ट के तहत सिर्फ केंद्र सरकार ही कार्रवाई कर सकती है। इसे अभी गैरकानूनी नहीं माना जाता। फैंटेसी स्पोर्ट्स के समर्थक कहते हैं कि ये विशेषज्ञता का खेल है, इसलिए इसे सट्टेबाजी और जुए से अलग माना जाए, लेकिन इसके विरोधी इसे डिजिटल सट्टेबाजी का ही एक प्रकार मानते हैं। कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, पीएमएलए, आईपीसी, फेमा, आयकर और उपभोक्ता कानूनों के अनुसार भी सट्टेबाजी और जुआ गैरकानूनी है।
क्यों फैंटेसी स्पोर्ट्स को सट्टेबाजी नहीं माना जाता?
फैंटेसी स्पोर्ट्स |
सट्टेबाजी |
|
ट्रांजेक्शन |
पारदर्शी और सुरक्षित, सिर्फ डिजिटल ट्रांजेक्शन। |
गैरकानूनी तरीके से ट्रांजेक्शन, ज्यादातर ब्लैक मनी। ज्यादातर नकदी। |
लाभ |
कॉर्पोरेट टैक्स, इनकम टैक्स, जीएसटी, टीडीएस सब लगता है। सरकारी खजाने को फायदा। |
सरकार को कोई रेवेन्यू नहीं। |
यूजर |
18 साल से ऊपर की उम्र जरूरी। जीतने पर सरकारी आईडी प्रूफ देना पड़ता है। |
ग्रे मार्केट में चलता है। किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं। |
कानूनी मान्यता |
फैंटेसी स्पोर्ट गैर-कानूनी नहीं। |
सट्टेबाजी गैर-कानूनी है। |