निहाल सिंह वाला (भूषण गोयल).अमेरिका में पर्यावरण संरक्षण में जुटी एनआरआईज की संस्था ‘पादशाह’ पंजाब के किसानों को भी पराली न जलाने के लिए अवेयर कर रही है। मोगा पहुंचे संस्था के मेंबर हरशरन सिंह धीदो गिल निवासी गांव ढुड्डीके ने बताया, अमेरिका में पराली का प्रयोग इमारतें बनाने में किया जाता है। वही तकनीकी पंजाब के किसान भी अपनाएं तो पर्यावरण संरक्षण के साथ कमाई कर सकते हैं।
गिल ने बताया कि पराली जलाने से जमीन के उपजाऊ तत्व खत्म हो जाते हैं। पराली से जहां बालन के लिए गोटियां बनाई जा सकती हैं वहीं घर बनाने के साथ-साथ चारा भी तैयार किया जा सकता है। यूरोप के देशों में पंजाब से तीन गुना ज्यादा धान की फसल होती है, लेकिन वहां पराली जलाने की बजाय प्रयोग में लाई जाती है। इससे वातावरण भी खराब नहीं होता। गिल के मुताबिक हमारी संस्था ने घर बनाने के लिए कारीगर ट्रेंड किए हैं। पराली व अन्य मैटीरियल से घर तैयार करके लोगों को देंगे।
ऐसे घरों में न आग लगती है न सीलन आती है :गिल ने बताया कि घर बनाने के लिए जंगरोधक लोहे के शिकंजों का इस्तेमाल किया जाता है। यह घर सस्ता व बढ़िया होता है। कुदरती आपदा से कोई जानी नुकसान भी नहीं होता। इसमें न सीलन न आती है और न ही आग लगती है। हमने फगवाड़ा के एक वातावरण प्रेमी बलविंदर प्रीत को मुख्य कारीगर के तौर पर तैयार किया है। हरशरन गिल ने कहा कि हमने इसको लेकर पीयू चंडीगढ़ तथा पीएयू लुधियाना में सेमिनार भी किए हैं। गिल ने बताया कि जून 2019 में अन्य संस्थाओं संग मिल जागरूकता सेमिनार लगाएंगे और पराली वाले घर भी बनाकर देंगेे।
घर बनाने की तकनीक :
गिल ने बताया कि जंगरोधी शिकंजे तैयार करने के बाद दीवारें खड़ी की जाती हैं। दीवारों में पराली भरकर आक्सीजन रहित कर पलस्तर करते हैंताकि स्पार्किंग से आग न लगे। अगली मंजिल बनाने से पहले लैंटर डाला जाता है और अगली मंजिल की दीवारों को पेंचों से लेंटर में कसा जाता है। इसमें मैग्निशियम आक्साइड वाला एमजीओ सीमेंट यूज होता है।
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