गैजेट डेस्क. दुनिया में हर साल 4.47 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता है। यह 1.25 लाख विमानों के कुल वजन से भी ज्यादा है। आगे स्थिति और गंभीर होने वाली है। संयुक्त राष्ट्र के ई-वेस्ट कोलिशन के साथ मिलकर तैयार की गई रिपोर्ट के हवाले से वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने कहा है कि 2050 तक सालाना ई-वेस्ट 12 करोड़ टन पहुंच जाएगा। ई-वेस्ट को पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक माना जाता है। इनमें लेड, पारा, कैडमियम जैसी हानिकारक धातुएं होती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में 1.46 अरब स्मार्टफोन बेचे गए। 2020 तक 2.87 अरब लोगों के पास स्मार्टफोन होगा। 2020 तक 50 अरब डिवाइस नेटवर्क से जुड़े होंगे। इनमें घरेलू उपकरणों से लेकर सेंसर तक शामिल हैं। ये डिवाइस भी खराब होंगे और ई-वेस्ट का बड़ा जखीरा सामने आ जाएगा।
खड़ी हो सकती है 4 लाख करोड़ की इंडस्ट्री
- अगर ई-वेस्ट रीसाइकलिंग को इंडस्ट्री का रूप दिया जाए तो दुनियाभर में रोजगार के लाखों अवसर भी सामने आ सकते हैं।
- अभी सिर्फ 20% ई-वेस्ट ही रीसाइकिल हो पाते हैं। अगर पूरे ई-वेस्ट को रीसाइकल किया जाए तो 4.4 लाख करोड़ रुपए की इंडस्ट्री खड़ी हो सकती है। यह हर साल होने वाले चांदी उत्पादन से ज्यादा है।
- एक टन मोबाइल में एक टन गोल्ड अयस्क की तुलना में 100 गुना ज्यादा सोना होता है। इसके बावजूद 2016 में 4.35 लाख स्मार्टफोन फेंके गए।
मौजूदा समय में असंगठित उद्योग है ई-वेस्ट रीसाइकलिंग
रिपोर्ट के मुताबिक ई-वेस्ट रीसाइकलिंग अभी कई देशों में संगठित उद्योग का रूप नहीं ले पाया है। कम विकसित और विकासशील देशों में रीसाइकलिंग पूरी तरह से रेगुलेटेड भी नहीं है। इसलिए नियमों का ठीक से पालन भी नहीं किया जाता है। इस वजह से स्वास्थ्य और पर्यावरण को ज्यादा खतरा है।
ये देश करते हैं ई-वेस्ट का निर्यात: अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय देश, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड।
इन देशों में भेजे जाते हैं ई-वेस्ट: भारत, चीन, ताइवान, अफ्रीकी देश, ब्राजील, अर्जेंटीना सहित कुछ लैटिन अमेरिकी देश इसमें शामिल।
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