चंडीगढ़ (ललित कुमार).फॉरेन कोर्ट के आदेशों के बावजूद स्थानीय कोर्ट बच्चे के हित में मामले पर दोबारा विचार कर सकती है।पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि विदेश की कोर्ट का नजरिया स्वदेशी कोर्ट से अलग हो सकता है लेकिन यहां की कोर्ट को नाबालिग बच्चे का हित सबसे पहले देखना होगा।
जस्टिस राजमोहन सिंह ने कहा कि भारत में अदालतों द्वारा बच्चे की कस्टडी देने को लेकर मानदंड अलग हैं। ऐसे में विदेश की कोर्ट के फैसले से पहले मौजूदा परिस्थितियों में बच्चे के हित को देखना सबसे जरूरी है। फैसले में स्पष्ट किया गया कि इसका मतलब यह हरगिज नहीं है कि बच्चे के वेलफेयर पर विचार करते हुए फॉरेन कोर्ट के नजरिए को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया जाए। इसमें बदली परिस्थितियों के मुताबिक बदलाव किया जा सकता है।
पति की विरोध याचिका कोर्ट ने खारिज की तो हाईकोर्ट पहुंचा:बच्चे के पिता की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया कि उनकी शादी दिल्ली मे हुई और इसके बाद वे पत्नी के साथ लंदन चले गए। उन्हें इंडियन ओवरसीज सिटीजन के साथ ब्रिटिश सिटीजनशिप दी गई। इसी दौरान उनका तलाक हो गया और विदेशी कोर्ट में पत्नी की सहमति से वे बच्चे को लेकर भारत लौट आए और पंचकूला में रहने लगे।
बाद में उनकी पत्नी ने पंचकूला की फैमिली कोर्ट में गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट 1890 के तहत याचिका दायर कर बच्चे की कस्टडी देनेे की मांग की। साथ ही मांग की कि उसे रोजाना नाबालिग बच्चे से बात करने और हर सप्ताह के अंत में बच्चे की कस्टडी दी जाए। बच्चे के पिता ने अर्जी का विरोध करते हुए इसे अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला कहा जिसे पंचकूला एडीशनल सिविल जज की कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई।
बच्चे खेलने की चीज या चल संपत्ति नहीं :
हाईकोर्ट ने पंचकूला कोर्ट के फैसले में दखल देने से इंकार करते हुए कहा कि बच्चे माता-पिता के लिए कोई खेलने की चीज या चल संपत्ति नहीं है। समय और बदलती परिस्थितियों में कोर्ट को पूरा अधिकार है कि वे बच्चे के हित और उसके कल्याण को देखते हुए फैसला ले।
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