मौड़ मंडी (विजय कुमार).12 साल से नशे के लिए बदनाम गांव जोधपुर पाखर अब देशभक्ति की मिसाल बन गया है। गांव को नशे के गर्त से बाहर निकालने का श्रेय यहां की महिलाओं को जाता है। इन महिलाओं को रिटायर्ड फौजी का सहयोग मिला जिन्होंने गांव के युवाओं को शारीरिक रूप से फिट रहने के लिए ट्रेनिंग देकर फौज मे भर्ती के काबिल बनाया। नतीजा ये रहा कि गांव के 70 से ज्यादा युवा सेना और पंजाब पुलिस में भर्ती हो चुके हैं। जब गांव में पहुंचे तो यहां ज्यादातर लड़के दौड़ की तैयारी में जुटे हुए थे। हर बार बड़ी संख्या में नौजवान सेना की भर्ती में जा रहे हैं।
क्षेत्र में जोधपुर गांव के आस-पास कोई खेल ग्राउंड या ट्रैक नहीं है। रोजाना सुबह शाम को दौड़ने शारीरिक फिटनेस के लिए युवाओं ने कोटला नहर की पटरी को 400 मीटर का ट्रैक मानकर अभ्यास करते हैं। फिजिकल टेस्ट पास करने तथा शरीर को काबिल बनाने, बीम जम्प आदि के लिए युवा सड़क पर अभ्यास करते हैं।
गांव के तीन किरदार, जिन्होंने बदला युवाओं का नजरिया –
1. रिटायर्ड फौजी तारा सिंह :
2014 में रिटायरमेंट के बाद फौजी तारा सिंह ने गांव के युवाओं में नशा छोड़कर देश सेवा का जज्बा पैदा किया। उनके प्रयास से अब गांव के हर युवा के दिल में देश सेवा का ही सपना पल रहा है। इसके लिए वे मेहनत भी करते हैं। 4 साल में 70 से ज्यादा युवा सेना में भर्ती हुए हैं। यदि तारा सिंह को भारतीय सेना में फौजी सप्लाई करने वाली फैक्ट्री कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगा।
2. पीड़ित मां नसीब कौर :
बेटा मेडिकल नशा करता था। मां नसीब कौर ने पुत्र वधु सिमरनजीत कौर के साथ 2006 में गांव के महिलाओं का संगठन बनाकर नशे के खिलाफ जागो निकाली। उन्होंने गांव में चल रही मेडिकल शॉप के सामने धरने शुरू दिए। महिला मंडल को ग्रामीणों का साथ मिलने लगा तो वे घबराने लगे। नशे का मुख्य सरगना गांव छोड़कर भाग गया। अब जोधुपर पाखर फौजियों का गांव बन चुका है।
3. वरिंदर ने निशुल्क पढ़ाया :
एमबीए वरिंदर कुमार ने 2012-2013 से गांव के लड़कों को निशुल्क शिक्षा देना शुरू किया था। उनके पास जोधपुर के अलावा अन्य गांव यात्री, बुर्ज मानसा के बच्चे दोपहर के समय दो से तीन घंटे और रात को 7 से 9 बजे तक पढ़ने के लिए आते हैं। इस दौरान सेना, सीआरपीएफ, रेलवे और बीएसएफ में परीक्षा की तैयारी करने वाले करीब 50 युवा सेना में भर्ती हुए हैं।
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