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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

64 साल की भारतवंशी वैज्ञानिक 40 साल से पेड़ों पर बैठकर पर्यावरण का अध्ययन कर रहीं

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सैन जोस. भारतीय मूल की अमेरिकी वैज्ञानिक नलिनी नाडकर्णी (64) जंगलों में रहकर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन कर रही हैं। कई सालों से नलिनी कोस्टारिका के मॉन्टेवर्दे के जंगलों में रह रही हैं। खास बात यह कि जिस जंगल में पैदल चलना कठिन होता है, वहां नलिनी ऊंचे पेड़ों पर बैठकर क्लाइमेट चेंज पर शोध कर रही हैं। एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जाने के लिए वह उसी तरह से रस्सियों का इस्तेमाल करती हैं, जैसे कोई पर्वतारोही करता है।

  1. नलिनी के शोध का मुख्य विषय एपीफाइट्स (एक पेड़ से निकला दूसरा पौधा) है। फिलहाल वे कोस्टारिका के बादलों से घिरे जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन कर रही हैं। यहां के पेड़ सामान्य रूप से 1500-1800 मीटर तक लंबे होते हैं। पेड़ों की ऊंचाई इस बात पर निर्भर होती है कि वे कितना पानी और खनिज जमीन से खींच पाते हैं।

  2. मॉन्टेवर्दे के जंगलों में साल के ज्यादातर महीनों में बादल छाए रहते हैं। लेकिन यहां अब ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा पैदा हो रहा है। जंगल से रंग-बिरंगे पक्षी, चमगादड़ गायब हो रहे हैं। कोस्टारिका का यह जंगल दुनियाभर में मशहूर है लेकिन नलिनी इसके भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

  3. नलिनी के मुताबिक- ट्रॉपिकल क्लाउड फॉरेस्ट (बादलों से घिरा उष्णकटिबंधीय जंगल) का अपना ही एक प्रकार होता है। पूरी धरती के जंगलों में केवल 1% ही क्लाउड फॉरेस्ट है। यहां साल के ज्यादातर दिनों में धुंध या बादल छाए रहते हैं। यही इसे खास बनाता है। जब मैं किसी पेड़ पर चढ़ती हूं तो अंधेरे-हवारहित माहौल से काफी ऊपर आ जाती हूं। यह एक अलग ही दुनिया होती है।

  4. नलिनी कहती हैं- दुनिया की जिन 3 चीजों पर जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा खतरा है, वे हैं- कोरल रीफ (मूंगे की चट्टानें), ग्लेशियर और क्लाउड फॉरेस्ट। इन तीनों में बदलाव होने लगा है। इसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन जमकर हो रहा है।

  5. नलिनी और सहयोगी कैमरन विलियम्स 30 मीटर की ऊंचाई पर पेड़ की टहनी पर बैठकर जलवायु में हो रहे बदलावों का अध्ययन करते हैं। शोध के दौरान अमेरिकी प्रशांत महासागर पश्चिमोत्तर स्थित एक जंगल में नलिनी की जान जाते बची थी। 15 मीटर की ऊंचाई पर उनकी रस्सी टूट गई थी।

  6. नलिनी के मुताबिक- मैं 40 साल से पेड़ों पर चढ़ रही हूं। मुझे इसमें कभी परेशानी नहीं हुई। अगर आप साजो-सामान से लैस हैं तो कोई दिक्कत नहीं जाने वाली। दरअसल पेड़ ही दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह होते हैं। तीन साल पहले रस्सी टूटने से हादसा हो गया था। मेरे स्टूडेंट्स ने बताया कि मैं रेत की बोरी की तरह धड़ाम से गिर पड़ी। 6 घंटे बाद हेलिकॉप्टर से मुझे रेस्क्यू किया गया।

  7. नलिनी की रीढ़ की हड्डी में पांच जगह चोट लग चुकी है। उनकी स्प्लीन (तिल्ली या प्लीहा) खराब हो चुकी है। कमर की हड्डी भी तीन जगह से और 9 पसलियां टूट चुकी हैं। नलिनी कहती हैं कि मेरा शेप बिगड़ चुका है लेकिन दिक्कतें शोध में आड़े नहीं आ सकतीं।

  8. स्थानीय पर्यटन परिषद के प्रमुख गुइलेर्मो वरगास कहते हैं कि बीते 58 साल में जंगल बदल गया है। साल में ज्यादातर जंगल पर बादल छाए रहते हैं। महीनों तक होने वाली बारिश नवंबर में जाकर रुकती है। बारिश के चलते जंगल में मिट्टी का कटाव भी काफी होता है। हमारा मकसद साल में आने वाले 15 हजार पर्यटकों की संख्या को 2 लाख तक पहुंचाना है।

  9. नलिनी कहती हैं- मॉन्टेवर्दे को क्लाउड फॉरेस्ट के नाम से बेचा जा रहा है। अगर ऐसा होता रहा तो यह क्लाउड फॉरेस्ट की जगह महज एक रेन फॉरेस्ट (वर्षा वन) बनकर रह जाएगा। 2040 में आने वाले पर्यटकों को शायद यहां रेन फॉरेस्ट ही मिले।

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      indian origin american scientist measures spent 40 years for climate change
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