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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

टकसाली नेताओं की नई पार्टी के आगे वजूद कायम रखने जैसी कई चुनौतियां

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अमृतसर.डेरा सिरसा मुखी गुरमीत राम रहीम सिंह के माफीनामा और फिर श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और बरगाड़ी कांड के आक्रोश स्वरूप रविवार को शिअद (बादल) से बागी हुए टकसाली नेताओं रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, डॉ. रतन सिंह अजनाला, सेवा सिंह सेखवां व उनके समर्थकों ने अलग शिरोमणि अकाली दल (टकसाली) का गठन करके जहां बादल परिवार को चुनौती दी है वहीं टकसाली नेताओं के लिए भी पार्टी को खड़ा करना आसान नहीं है। इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो जिस किसी ने भी अकाली दल से अलग होकर नया दल बनाया वे दल हाशिए पर आ गए और आज भी वजूद से जूझ रहे हैं।

1920 में बने अकाली दल के अब तक बन चुके हैं कई धड़े :
1920 में शिरोमणि अकाली दल का गठन किया गया था और परकाश सिंह बादल के नाम पर उसके आगे (बादल) रखा गया था। कुछ समय बाद पार्टी में कुछ खटपट हुई तो प्रो. दर्शन सिंह ने इसे भंग कर दिया और नाम बदलने की मांग उठाई लेकिन बादल ने उसे भंग नहीं किया।

इसके बाद प्रोफेसर दर्शन सिंह ने शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) का गठन किया और उसकी जिम्मेदारी सिमरनजीत सिंह मान को सौंपी। इसके बाद पार्टी में परंपरा बन गई कि जो बादलों से नाराज हुआ उसने बगावत करके अपनी अलग पार्टी इसी नाम से बना ली।

मुख्य अकाली दल से टूट कर नए अकाली दल बनने की सूची पर नजर मारें तो इसमें शिरोमणि अकाली दल (1920), शिरोमणि अकाली दल (यूनाइटेड), शिरोमणि अकाली दल (पंथक), शिरोमणि अकाली दल (मनजीत सिंह) के नाम शामिल हैं। बागियों ने अलग तो पार्टी बना ली लेकिन उनका वजूद नहीं बना सके। सिर्फ कुछ समय के लिए सिमरनजीत सिंह ने आतंकवाद के दौर में अपनी पार्टी चलाने में सफलता हासिल की लेकिन इसके बाद वह भी बस, नाम की पार्टी रह गई।

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not easy for taksaali party to stand