पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। कुछ एप्लीकेंट्स ने स्कीम का फायदा लेने के लिए फर्जी कास्ट सर्टिफिकेट बनवाकर पोर्टल पर अप्लाई कर दिया। एसडीएम दफ्तर ने इनमें से 5 फर्जी सर्टिफिकेट ट्रेस कर लिए हैं। इस खुलासे के बाद सिटी के सभी 113 कॉलेजों की तरफ से पोर्टल पर अप्रूव किए गए करीब 11 हजार कास्ट सर्टिफिकेट्स की जांच शुरू कर दी गई है। फर्जी कास्ट सर्टिफिकेट्स के जरिये कॉलेजों में दाखिला लेने के और भी कई मामले सामने आने की संभावना है। डीसी ने जांच के आदेश दिए हैं।
एसडीएम-2 परमवीर सिंह का कहना है कि पुलिस जांच करवाई जाएगी। सर्टिफिकेट साल 2016 से 2018 के बीच जारी किए गए हैं। पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम के तहत सरकारी पोर्टल पर आवेदन दाखिल करने की आखिरी तारीख 15 नवंबर थी। सिटी से 11 हजार के करीब आवेदन दाखिल हो चुके हैं। इनमें से कितने कास्ट सर्टिफिकेट फर्जी हैं, खुलासा जांच के बाद ही होगा।
दरअसल तहसील में फर्जी सर्टिफिकेट बनाने वाले एजेंट सरगर्म हैं, जिनकी मिलीभगत से ऐसा हो रहा है।
गोलमाल <img src=\"images/p3.png\"2016 से 2018 में तैयार किए गए जाली सर्टिफिकेट
<img src=\"images/p3.png\"फर्जी साइन, मुहर से पकड़ा गया फ्रॉड
1. इन फर्जी सर्टिफिकेट्स के पकड़े जाने की सबसे बड़ी वजह इनमें से दो केंडीडेट्स का पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप आवेदन पिछले साल रिजेक्ट होना बना। दो एप्लीकेंट्स के पिछले साल इसलिए आवेदन रद्द हो गए थे क्योंकि वे बिहार के रहने वाले थे। उनकी कास्ट पंजाब में एससी कैटेगरी में शामिल नहीं थी। मगर इस साल उन्होंने खुद को पंजाब का रेजिडेंट बताकर लोकल कास्ट सर्टिफिकेट लगा दिए। इससे दोनों सर्टिफिकेट पकड़े गए।
2. इन पांचों कास्ट सर्टिफिकेट्स पर एक जैसी मुहर और साइन थे। मुहर पर लिखा ही नहीं हुआ कि तहसीलदार-1 ने जारी किया है या तहसीलदार-2 ने। सिर्फ तहसीलदार, जालंधर लिखा हुआ था। तहसीलदार के स्पेलिंग भी गलत लिखे हुए हैं। इसके बाद पांचों सर्टिफिकेट्स को शहर की दोनों तहसीलों में भेजा गया, जहां तहसीलदारों ने बताया कि उन्होंने ये सर्टिफिकेट्स जारी नहीं किए।
4. इसी तरह जिन एप्लीकेंट्स ने खुद को लोकल रेजिडेंट बताकर कास्ट सर्टिफिकेट लगाया था, उन्हें प्रशासन ने फोन करके बुलाया। जब वे सामने आए तो क्लियर हो गया कि वे पंजाब के रहने वाले नहीं हैं। उनके आधार कार्ड भी दूसरे राज्यों के थे। इससे स्थिति स्पष्ट हो गई।
3. शहर में अब डिजिटल सर्टिफिकेट बन रहे हैं। इन पर तहसीलदार के साइन नहीं होते। मुहर के अलावा सिर्फ एक स्टिकर लगा हुआ है। फर्जीवाड़े के दौरान अब तक जो सर्टिफिकेट्स पकड़े गए हैं, वे मैनुअल तरीके से जारी हुए हैं। उन सर्टिफिकेट्स पर न कोई होलोग्राम लगा हुआ है और न ही कोई डिजिटल साइन किए गए हैं।
<img src=\"images/p3.png\"फोर स्टेप्स में से सेकेंड पर ही पकड़े गए
आवेदन 4 स्टेप क्लियर हो तो स्टूडेंट के खाते में स्कीम के फंड्स पहुंचते हैं। सबसे पहले कॉलेज आवेदन क्लियर करता है, जो जिला प्रशासन के पोर्टल पर पहुंचता है। हरेक सब डिवीजन के एसडीएम की अगुवाई में डॉक्यूमेंट्स की जांच होती है। फाइल ऑनलाइन ही लाइन डिपार्टमेंट के पास पहुंचती है। फिर एजुकेशन डिपार्टमेंट या डीपीआई दफ्तर से क्लियरेंस के बाद फाइल वेलफेयर डिपार्टमेंट के हेडक्वार्टर पहुंचती है। वहां से कोई फाइल क्लियर हो जाए तो ही स्टूडेंट के खाते में पोस्ट मैट्रिक स्कीम के तहत फंड्स जारी किए जाते हैं। मगर ये पांचों केस दूसरे स्टेप पर ही पकड़े गए।
<img src=\"images/p3.png\"पंजाब सरकार भी करवा चुकी है ऑडिट
पंजाब सरकार पहले ही घपला ट्रेस कर चुकी है। वेलफेयर मिनिस्टर साधु सिंह धर्मसोत पहले ही खुलासा कर चुके हैं कि ऑडिट में बड़े स्तर पर गड़बड़ी पाई गई है। जिन कॉलेजों ने पैसों के चक्कर में फर्जी दाखिले दिए हैं, उनके खिलाफ एफआईआर करवाई जाएगी। पंजाब सरकार जल्द ऑडिट रिपोर्ट जारी करेगी। घोटाला करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
<img src=\"images/p3.png\"सर्टिफिकेट्स में दिए एड्रेस भी निकले फर्जी
फर्जी कास्ट सर्टिफिकेट्स पर दिए गए एड्रेस भी फर्जी निकले। इनमें से बस्ती मिट्ठू, गांधी कैंप के जो एड्रेस दिए गए थे, वहां संबंधित आवेदकों के घर ही नहीं मिले। सोमवार देर शाम दैनिक भास्कर के रिपोर्टर दोनों पतों पर एप्लीकेंट्स को ढूंढने निकले लेकिन इनके एड्रेस गलत निकले। लोगों ने बताया कि इस पते पर इस तरह का कोई भी व्यक्ति या परिवार नहीं रहता।
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