कस्बा फूल टाउन के नौजवानों ने कस्बे के अंदर मौजूद पुरातन विरसे की धरोहर किला मुबारक को बचाने का मन बनाया तो नौजवानों के साथ पूरा गांव जुट गया और किला को बचाने में उनका साथ देने लगा। नौजवानों की तरफ से किये जा रहे इस काम में कस्बे के समूह दुकानदार समेत एनआरआई भाइयों की तरफ से भी सहयोग दिया जा रहा है। फुलकिया रियासत वेलफेयर सोसायटी के मेंबरों ने बताया कि वह बचपन से देखते आ रहे हैं कि प्रशासन की बेरुखी के कारण किला मुबारक खंडहर बनता जा रहा है वहीं गांव के लोग भी इसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे तो उन्होंने मिलकर 21 मार्च 2017 को किला की संभाल का मन बनाया और मलबा उठाना शुरू कर दिया जिसपर पहले तो गांव के कई लोगों ने इसको बेवकूफी करार दिया परन्तु जैसे जैसे किले के अंदर से मलबे के ढेर साफ होते गए तो गांव वाले भी अपने आप इस काम में साथ देने लगे।
फूल टाउन के ऐतिहासिक किला मुबारक संरक्षण की कवायद, महिलाएं भी आईं साथ
विश्व मानवाधिकार दिवस 10 को आईएचआरसी सोसायटी के मेंबरों को करेगी सम्मानित
क्लब के नौजवान करते हैं किले के अंदर काम, महिलाएं उनके लिए रोटी, चाय की करती हैं व्यवस्था
क्लब मेंबरों ने बताया..सरकार से नहीं मिल रही मदद, तीन महीने पहले चंडीगढ़ से सर्वे करने टीम आई थी, अधिकारियों ने एस्टीमेट भेज देने का दिया था भरोसा लेकिन अब तक कार्रवाई नहींं
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किले का इतिहास|रामपुरा फूल में बने ऐतिहासिक किले को 1712 में बाबा फूल ने बनाया था। हमीर सिंह और भरपूर सिंह ने इस किले को नया रूप दिया। किले में सोने के जेवर भी जडे़ गए थे। अफसोस समय बीतने के साथ न ही उन शासकों के वंशजों और न ही किसी सरकारों ने इस तरफ ध्यान दिया। यह किला जो इस पूरे प्रदेश का नाम पर्यटन के नक्शे पर ला सकता था, लेकिन अब यह अपनी दयनीय हालत पर खुद आंसू बहाता नजर आ रहा है। किले का एक बड़ा हिस्सा ढह चुका है।
सोसायटी ने प्रशासन से भी मांगी मदद
सरकार की तरफ से इसकी तरफ अभी भी कोई ध्यान नहीं दिया गया। सोसायटी के मेंबरों ने बताया कि दैनिक भास्कर की वजह से बेशक पुरातन विभाग बठिंडा और चंडीगढ़ की टीम ने आकर किला मुबारक का जायजा लिया था और एस्टीमेट भेज मदद करने का भरोसा दिया था परन्तु करीब तीन महीने बीत जाने के बाद भी सरकार की तरफ से किसी तरह की कोई भी मदद नहीं भेजी गई। उन्होंने प्रशासन से मांग की है।
दिन-रात होता है काम
किले के अंदर बने तहखाने और हथियार तैयार करने वाली कोठी को भी खाली कर उसकी मरम्मत की गई। नौजवान को दिन रात काम करते देख गांव की महिलाएं उनके लिए चाय पानी और रोटी का प्रबंध करने लगी और लोगों ने फंड इकट्ठा करके देना शुरु कर दिया। । एनआरआई और गांव निवासियों के सहयोग के साथ अब तक करीब आठ लाख रुपए खर्च हो चुके हैं।
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