मुंबई.अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस चेलेमेश्वर ने कहा कि विधायी प्रक्रिया से कोर्ट के फैसले को बदला जा सकता है। इसके कई उदाहरण पहले भी सामने आ चुके हैं। अदालत में मामला विचाराधीन होने के बाद भी सरकार राम मंदिर बनाने के लिए कानून बना सकती है।
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रिटायर्ड जस्टिस का बयान ऐसे वक्त आया है। जब संघ परिवार ने राम मंदिर के लिए 1992 जैसा आंदोलन करने और कानून बनाकर सरकार से जमीन अधिग्रहण करने की बात कही है। जस्टिस चेलेमेश्वर शुक्रवार को कांग्रेस से जुड़े संगठन ऑल इंडिया प्रोफेशनल्स कांग्रेस के कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
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परिचर्चा में जस्टिस चेलेमेश्वर से पूछा गया था कि क्या मौजूदा हालात में सरकार राम मंदिर के लिए कानून पारित कर सकती है। उन्होंने कहा कि इसका एक पहलू है कि कानूनी तौर पर यह संभव है। दूसरा है कि यह होगा (या नहीं)। ऐसे कई मामले हैं जो पहले हो चुके हैं, इनमें विधायी प्रक्रिया ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले में रुकावट पैदा की थी।
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जस्टिस चेलेमेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश पलटने के लिए कर्नाटक के कावेरी जल विवाद और राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के बीच जल विवाद से जुड़ी एक घटना का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इन मुद्दों को लेकर पहले ही खुला रुख अपनाना चाहिए था। यह (राम मंदिर पर कानून) संभव है।
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आरएसएस की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शुक्रवार को सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने कहा था कि अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से हिंदू समाज अपमानित महसूस कर रहा है। कोर्ट ने कहा था कि यह मुद्दा उनकी प्राथमिकता में नहीं है। उन्होंने कहा कि संघ परिवार को राम मंदिर के लिए 1992 की तरह आंदोलन करने में कोई हिचक नहीं होगी, लेकिन तब तक विवाद सुप्रीम कोर्ट में है, इस पर रोक रहेगी।
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जस्टिस चेलेमेश्वर जनवरी 2018 में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों में शामिल थे। तब सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार सार्वजनिक तौर पर जजों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे।