जयपुर. सरदार वल्लभभाई पटेल ने 30 मार्च 1954 को कांग्रेसियों से कहा था कियहां जो लोग कांग्रेस में काम करने वाले हैं, उनसे मैं चंद बातें कहना चाहता हूं, क्योंकि मैं खुद कांग्रेस का सेवक हूं। मैंने कांग्रेस के सिपाही के रूप में बहुत साल काम किया है। अभी भी एक सिपाही हूं। लोग जबर्दस्ती कहते हैं कि मैं सरदार हूं। लेकिन असल में मैं सेवक हूं। मैं अपने सिपाहियों से अदब से कहना चाहता हूं कि आप लोगों को समझना चाहिए कि हमारी इज्जत या प्रतिष्ठा किस-किस चीज में है।
“हम दावा करते हैं कि हमारी जगह आगे होना चाहिए। यह दावा इसलिए बना कि हम महात्मा गांधीजी के पीछे चलते थे। इसलिए वह जगह हमें मिली। आज हिंदुस्तान स्वतंत्र हुआ है तो कुर्बानी से हुआ है। लेकिन जो नई कुर्बानी करनी चाहिए, वह न करो तो पिछली भी व्यर्थ हो जाती है। आज कुर्बानी होती है कडुवा घूंट पीने से। मान-अपमान सहन कर जाएं और सच्चे दिल से गरीबों की सेवा करते जाएं, कुर्बानी उसी में है। उसी से हमारी इज्जत होगी। हम में आपसी नम्रता होनी चाहिए, उसका अभाव है। कांग्रेस मैन का पहला कर्तव्य यह है कि नम्र बने।”
“सेवक बनने का जिसका दावा है, वह अगर नम्रता छोड़ दे और उसमें अभिमान पैदा हो जाए तो वह सेवा किस तरह करेगा? सत्ता लेने के लिए कोशिश करना हमारा काम नहीं है। सत्ता हम पर ठूंसी जाए, तब वह और बात है। सत्ता के लिए हम अपनी शक्ति न लगाएं। छोटी-छोटी चीजों का आग्रह करने वाले लोग कांग्रेस को नहीं पहचानते। ऐसी बातें वही कर सकते हैं, जिन्होंने कांग्रेस में सच्चा काम नहीं किया है। सच्चे कांग्रेस मैन को तो लाेग धक्का मारकर आगे बैठाएंगे, क्योंकि वह सच्चा सेवक होगा।”
“मैं कभी व्याख्यान नहीं देता था और आज भी जब मुझे व्याख्यान देना पड़ता है तो कंपकंपी छूटती है, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी जुबान से कोई भी ऐसा शब्द निकल जाए, जिससे किसी को नुकसान पहुंचे। मुंह से ऐसी बात निकलना अच्छी बात नहीं है। यह सेवा का काम नहीं है। जो सिपाही होता है वह हमेशा जमीन पर चलता है, इसलिए उसको गिरने का डर नहीं होता। लेकिन जो अधिकारी बन गया और मर्यादा न रखे और मर्यादा की जगह न संभाले तो एक दिन जरूर गिरना है।”
“मैं आपसे उम्मीद रखूंगा कि हम अधिकार के पद की इच्छा न करें, मोह न करें, लालच न करें। जहां तक काम करने लायक लोग मिलें, उन्हें आगे करें, उनसे काम लें। यदि हमारा खुद उस जगह बैठना आवश्यक हो गया है तो दिल, आंख और जबान साफ होना चाहिए। हमेंबहुत दिनों तक परदेशी ताकत से लड़ना पड़ा। गुलामी काटने का वही एक रास्ता था। पर आज हमें अपनी कमजोरियों से लड़ना है। तभी प्रदेश को उठा सकते हैं।”
“दुनिया मैं आखिर सबसे बड़ी चीज क्या है। दुनियामें सबसे बड़ी चीज इज्जत और कीर्ति है। महात्मा गांधी के पास और क्या चीज थी। उनके पास न राजगद्दी थी, न शमशेर थी, न धन था। लेकिन उनके त्याग और चरित्र की जो प्रतिष्ठा थी, वह किसी के पास नहीं है। हम गुलाम इसलिए बने, क्योंकि एक-दूसरे से लड़ते थे। खतरे के समय एक-दूसरे का साथ नहीं दिया। आज तो एकता हुई है, उसे मजबूत बनाएं, जिससे भविष्य में हमारी स्वतंत्रता को कभी कोई हिला न सकें।”
पटेल ने खुद बनवाई थी अपनी पहली प्रतिमा: सरदार वल्लभ भाई पटेल की यहतस्वीर आज प्रासंगिक है। करीब 70 साल पुरानी इस तस्वीर में सरदार पटेल अपनी प्रतिमा के लिए चेहरे के हाव-भाव पर नियंत्रण रखकर बैठे हैं। संभवत: यह पहला मौका था, जब सरदार अपनी प्रतिमा के लिए इस तरह धीरज के साथ पोज दे रहे थे। तस्वीर में हॉलैंड की शिल्पकार क्लेरा क्वीन प्रतिमा को फाइनल टच देते नजर आ रही हैं, जबकि क्लेरा क्वीन की बेटी अपनी गुड़िया के साथ सरदार के पास खड़ी है।
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