हिसार. अमेरिका, इटली और चीन जैसे देशों से 10 गुना अधिक कीमतों में इंपोर्टेड बायोडिग्रेडेबल केमिकल को अभी तक देश में मंगाकर वैज्ञानिक कार्य कर रहे थे। मगर अब एचएयू के 3 वैज्ञानिकों ने 17 वर्ष की रिसर्च के बाद बायो डिग्रेडेबल केमिकल तैयार किया है। जिससे बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन भी बना सकते हैं। जाे 10 दिन में अपने आप नष्ट हो जाएगी। ऐसे में सरकार ने इस प्रोजेक्ट पर ध्यान दिया तो पॉलीथिन प्रदूषण को रोकने में यह अहम कदम माना जा सकता है।
एचएयू वीसी प्रो. केपी सिंह ने बताया कि वैज्ञानिकों द्वारा पर्यावरण मैत्री, सस्ता और स्वयं विघटित हो सकने वाले बायोप्लास्टिक के निर्माण में प्रयोग होने वाली जैव रसायन-पॉली हाईड्रोक्सी ब्यूटारेट (पीएचबी) बनाने की तकनीक इजाद की है। जिसे भारत सरकार के पेटेंट कार्यालाय ने पेटेंट भी दे दिया है। मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, बायो टेक्नोलॉजी एंड बायो इंफरमेटिक्स विभाग के वैज्ञानिकों की टीम ने डॉ. वीरेंद्र कुमार सिक्का के नेतृत्व में यह कार्य किया गया।
डॉ. सिक्का ने बताया कि अक्सर बायोडिग्रेडेबल केमिकल बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया राल्सटोनिया, एल्केलिजेंस से तैयार किया जाता है। मगर उन्होंने दालों पर नाइट्रोजन पैदा करने वाले बैक्टीरिया पर प्रयोग करके राइजोबियम तैयार किया गया। जब राइजोबियम बैक्टीरिया को स्ट्रैस कंडीशन में रखा जाता है, तब यह अपना जीवन बचाने के लिए संघर्ष करता है और पीएचबी बनाना शुरू कर देता है।
उन्होंने पीएचबी का गुण देखा तो पाया कि इसमें बायोप्लास्टिक के गुण है। पर्यावरण मैत्री सूक्ष्म जीव राईजोबियम का प्रयोग करके पीएचबी का उत्पादन किया है। इस तकनीक से जैव भार का 50 से 60 प्रतिशत तक पीएचबी परिवर्तित हो जाता है।
उधर, बेसिक साइंस कॉलेज के डीन डॉ. राजवीर सिंह और मॉलेक्यूलर बायोलॉजी, बायो टेक्नोलॉजी एंड बायो इन्फरमेटिक्स विभाग की अध्यक्षा डॉ. पुष्पा खरब ने बताया कि वैज्ञानिकों की उपरोक्त टीम बायोप्लास्टिक का निर्माण करने वाली सूक्ष्मजीव प्रजातियों व जींस की पहचान करने में जुटी है। यह प्रयोग यदि सफल रहे तो बायोप्लास्टिक की लागत बहुत हद तक कम हो जाएगी।
पॉलीथिन ऐसे किया जा सकता है तैयार :
जैव रसायन पीएचबी में प्लास्टिक जैसे गुण होते हैं, परंतु इसमें प्लास्टिक जैसी विषमताएं नहीं होती। इस पीएचबी को रासायनिक प्लास्टिक के साथ मिलाकर उसके दुष्प्रभाव काफी हद तक कम किए जा सकते हैं जिससे हमारे जीवन चक्र से खतरनाक प्लास्टिक के दुष्प्रभाव कम हो सकेंगे।
जहां पर पीएचबी की उत्पादन लागत का प्रश्न है तो यह इसके उत्पादन और अलग करने में शामिल विभिन्न प्रकार के इनपुट की लागत को जोडक़र 1494 रुपए प्रति किलोग्राम आंकी गई है जोकि सिंथेटिक प्लास्टिक से तुलनात्मक है और अंतराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में काफी किफायती है।
पेटेंट की संख्या हुई 15 :
कुलपति प्रो. केपी सिंह ने बताया कि उपरोक्त तकनीक का पेटेंट होने के बाद एचएयू तकनीकों को अब तक मिल चुके पेटेंटस की संख्या 15 हो गई है। उन्होंने बताया भारतीय पेटेंट ऑफिस में एचएयू की ओर से कुल 43 प्रौद्योगिकियों को पेटेंट करवाने के लिए आवेदन किए गए हैं।
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